dharm_ke_liya_hinsa_galat_hai_kyaSilhouette group of people Raised Fist and Protest Signs in yellow evening sky background

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने पूरी दुनिया को संदेश दिया, “अहिंसा परमो धर्म” अर्थात अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है। यह श्लोक श्री कृष्ण ने महाभारत में कहा था। परन्तु गाँधी द्वारा कहा गया यह श्लोक पूर्ण नहीं है। महाभारत के अनुसार पूर्ण श्लोक कुछ इस प्रकार है, “अहिंसा परमो धर्म, धर्म हिंसा तदेव च” अर्थात अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ हैं। जब बात धर्म पर आती है तो अपने धर्म, अपनी परंपरा के हित में सोचना हर मनुष्य का परम धर्म है।

विरोध और हिंसा

आजकल भारत की राजधानी, दिल्ली में हम सबसे अधिक हिंसा देख रहे हैं। भारत सरकार द्वारा लाया गया नागरिक संशोधन अधिनियम जिसका विभाजन धर्म के अनुसार हुआ, इस हिंसा का प्रमुख कारण है।

विरोध का कारण मुस्लिम समाज के साथ कहीं ना कहीं हुए भेदभाव भी है। ऐसे में मुस्लिम समाज का विरोध और प्रदर्शन लाज़िमी है। मुसलमान देश के विरूद्ध नहीं है, क्योंकि वे जानते हैं कि भारत देश में उनके पूर्वज रहे हैं और यह उनकी मिट्टी है, जिसके लिए हर भारतीय (सभी धर्म के) मर मिटने को तैयार है। किन्तु जब बात किसी धर्म विशेष पर आती है तो धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना श्रेष्ठ है।

परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे भूल जाएं कि जिस संपत्ति का वे नुकसान कर रहे हैं, वह किसी राजनीतिक पार्टी की नहीं अपितु उनकी हैं। ऐसे में भारत सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि वे अखंड भारत की लोकतांत्रिकता को समझें और निर्णय लें।

दूसरी ओर मुस्लिम समाज को भारत सरकार से हमेशा सहयोग प्राप्त हुआ है। फिर चाहे वो उनकी हज की यात्रा हो, अल्पसंख्यक का लाभ हो, या फिर मुस्लिम समाज के मौलवियों को दिए जाने वाले मासिक भत्ते की हो। इतनी सुविधाओ और सहयोग के बावजूद भारत पर आक्रमण इस्लाम धर्म की ओर से हमेशा होता आया है। धर्म के लिए हिंसा जरूरी है परंतु धर्म के नाम पर कानून को ना समझना और हिंसा फैलाना लोकतंत्र के खिलाफ होना है।

स्टूडेंट्स के साथ हिंसा गलत है

विश्वविद्यालय जो शिक्षा का केंद्र है, ज्ञान का भंडार है, वहां छात्र छात्राओं के साथ अभद्र व्यवहार होना श्रेष्ठ नहीं है। भारत देश में हर व्यक्ति को वाक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। ऐसे में अगर जेनयू के बच्चे अपने हक के लिए आवाज़ उठाते हैं, तो वे गलत नहीं है। किन्तु आधी रात में जेनयू परिसर में जाकर दंगाई करना उनके अधिकारों का हनन करना है। अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना हिंसा नहीं कहलाता है, अपितु अधिकार की रक्षा करना कहलाता है। जो हर विद्यार्थी का धर्म है।

दूसरी ओर हर विद्यार्थी को यह समझना होगा की धर्म और अधर्म में क्या अंतर है। अगर विद्यार्थी की भावना किसी समाज या समूह विशेष को ठेस पहुंचाने की है, तो हिंसा करना अधर्म कहलाता है। हिंसा जायज हक के लिए ही सही है।

उसी प्रकार यदि आप अपने घर, कार्यस्थल या सार्वजनिक क्षेत्रों में किसी व्यक्ति विशेष के साथ अभद्र व्यवहार या भेदभाव होते देखते है तब “अहिंसा परमो धर्म” कहकर शांत रहना श्रेष्ठ नहीं होगा। क्योंकि उस समय आपकी शांति या चुप्पी यह बतलाती है कि आप भी उस अन्याय का हिंसा हो। महाभारत में कृष्ण जी ने कहा है, “धर्म हिंसा तदेव च”, अर्थात, धर्म के लिए हिंसा करना श्रेष्ठ हैं।

अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, किन्तु आज के युग में जब हिंसा चरम सीमा पर है और मनुष्य अपना धर्म भूल गया है। ऐसे में हिंसा के खिलाफ और अपने अधिकारों और धर्म की रक्षा के लिए आवाज़ उठाना अहिंसा ना करने से अधिक श्रेष्ठ है।

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By Hemlata

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