वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद/ मंदिर आजकल चर्चा का विषय बनी हुई है। ऐसा नहीं है कि यह विवाद हाल ही में शुरू हुआ है, यह परिसर सालो पहले भी विवादो के घिर चुका है। ज्ञानवापी परिसर में सर्वे कराने के लिए पांच महिलाओं (लक्ष्मी देवी, रेखा पाठक, सीता साहू, मंजू व्यास और रखी सिंह) ने कोर्ट में याचिका दायर की। जिसके तहत कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया और सर्वे के दौरान मस्जिद के वजू खाने में 12.8 फीट व्यास के शिवलिंग मिलने की खबर बताई जा रही है। हालांकि मुस्लिम पक्ष ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया। इसके उपरांत अंजुम इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने कोर्ट में याचिका दर्ज कराई और चल रहे सर्वे पर रोक लगाने की गुहार की।
इसी दौरान मुस्लिम पक्षों द्वारा एक एक्ट काफी चर्चे में आया, वह है 1991 पूजा स्थल कानून (Place of Worship Act 1991)। इसी बीच याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट में इस कानून की चुनौती देते हुए कहा कि यह कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
जानते है क्या है 1991 पूजा स्थल कानून?
1991 में कांग्रेस की सरकार थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री थे, पी. वी.नरसिम्हा राव, जिन्होंने पूजा स्थल कानून बनाया था। इस कानून के अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। अगर कोई ऐसा करता है तो उसे एक से तीन साल की जेल होगी और जुर्माना देना होगा। यह धारा यह भी कहती है की, 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल के बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका पेंडिंग है तो उसे बंद माना जायेगा।
पूजा स्थल एक्ट 3 :
इस धारा के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है। इसके साथ ही यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के रूप में ना बदला जाए या फिर एक ही धर्म के अलग खंड में भी ना बदला जाए।
पूजा स्थल एक्ट 4(1) :
इसके अनुसार 15 अगस्त 1947 को एक पूजा स्थल का चरित्र जैसा था उसे वैसा ही बरकरार रखा जाएगा।
पूजा स्थल एक्ट 4(2) :
धारा- 4 (2) के अनुसार यह उन मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने की बात करता है जो प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के लागू होने की तारीख पर पेंडिंग थे।
पूजा स्थल एक्ट 5 :
यह एक्ट रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं करेगा।
क्या इसका विरोध अब शुरू हुआ है? या फिर इस कानून को लाने का मकसद ही सालों पहले चल रहे विरोध को पूर्ण विराम लगा कर, नागरिकों में भेदभाव और मौलिक अधिकारों के हनन का था?
90 के दशक में भाजपा कार्यकर्ता लाल कृष्ण आडवाणी ने इसका पुरजोर विरोध किया था और सोमनाथ से यात्रा निकाली थी जिसका अंतिम स्थान अयोध्या पहुंचना था। उस समय जनता दल की सरकार थी, जिसके आदेश से आडवाणी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके पश्चात भाजपा ने अपना समर्थन जनता दल से हटा लिया और सरकार गिर गई। इसके उपरांत कांग्रेस सत्ता में आई और पी. वी.नरसिम्हा राव ने यह कानून बनाया, जिसका लोकसभा में काफी विरोध भी हुआ, परंतु यह बिल पारित हो गया।
इस घटना से हम जान सकते है की मंदिरों को तोड़कर बनाए गए विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा बनाए गए मस्जिद का विरोध आज का नहीं है।
1991 पूजा स्थल कानून के तहत लोकतंत्र भारत का नागरिक कोर्ट ने याचिका दायर नही कर सकता, फिर अश्विनी उपाध्याय की याचिका किस आधार पर दायर की गई है?
अश्विनी उपाध्याय ने पूजा स्थल को नहीं अपितु 1991 में बनाए गए पूजा स्थल कानून को चुनौती दी है और उसे खत्म करने की मांग की है। अश्विनी उपाध्याय जो एक वरिष्ठ अधिवक्ता और बीजेपी नेता है, जिन्होंने अपनी याचिका में पूजा स्थल कानून धारा 3, 4 और 5 (जिसका उल्लेख आर्टिकल में किया गया है) को मौलिक अधिकार का हनन और संविधान का उल्लंघन बताते हुए रद्द करने की मांग की है। इस कानून में अयोध्या राम जन्म भूमि को अलग रखा गया, परंतु मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि को नहीं, जबकि दोनो विष्णु का अवतार है। इस आधार पर यह कानून आर्टिकल 14 और 15 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
इसके साथ ही केंद्र सरकार को यह कानून बनाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि संविधान में तीर्थ स्थल और पब्लिक ऑर्डर राज्य का विषय है। अर्थात केंद्र ने इस विषय पर कानून बनाकर क्षेत्राधिकारी का अतिक्रमण किया है।
याचिकाकर्ता का यह भी कहना है की यह धाराएं 1192 से लेकर 1947 के दौरान आक्रमणकारियों द्वारा गैरकानूनी रूप से स्थापित किए गए पूजा स्थल को कानूनी मान्यता देता है। 1991 पूजा स्थल कानून में कट ऑफ डेट 15 अगस्त 1947 तय की गई है, जबकि उससे पहले कई आक्रमणकारियों ने हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के पूजा स्थल तोड़े है, यह कानून अवैध रूप से बनाए गए धार्मिक स्थलों को वैध घोषित करता है। हर धर्म के लोगो को अपने रीति रिवाज पालन करने का अधिकार है, परंतु यह कानून न्याय और सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
यह कानून हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लोगो को अपना धार्मिक स्थल दोबारा हासिल करने से वंचित करता है, क्योंकि वे लोग इस मामले में कानून का दरवाजा नहीं खटखटा सकते। जिसके तहत यह आर्टिकल 25 और 26 के तहत हर धर्म के लोगो को अपने तीर्थ और पूजा स्थल को बनाए रखने, उसके प्रबंधन, रख रखाव और प्रशासन के अधिकार से वंचित करता है। आर्टिकल 26 जो हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लोगों को यह अधिकार देता है कि वह अपनी हस्तलिपि और संस्कृति को संरक्षित करने से भी वंचित करता है। कोई भी सरकार किसी से सिविल सूट दाखिल करने और हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार नहीं छीन सकता। 1991 पूजा स्थल कानून, ज्यूडिशियल रिव्यू के संवैधानिक व्यवस्था में दखल देता है। इस कानून के अनुसार केंद्र सरकार संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार करती है।
लोकतांत्रिक देश में अगर कोई कानून आपके लिए कोर्ट का दरवाजा बंद करता है तो यह हर भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है। यह चिंतन का विषय है और आवश्यकता है की केंद्र इस मामले में निर्णय ले, क्योंकि यह कानून लोकतंत्र देश में लोकतंत्र का हनन करता है।