कोविड के कारण सभी विद्यालयों और विश्वविद्यालयों को बंद कर दिया गया और बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दी गई। जब हालत ठीक हुए तो शिक्षा के बीच धर्म आ गया। 01 जनवरी 2022, को उडुपी, कर्नाटक में पांच लड़कियों को विद्यालय परिसर से बाहर निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने हिजाब पहना हुआ था। इसके बाद लड़कियों ने स्कूल के बाहर इसका विरोध किया, जो आज ना सिर्फ कर्नाटक बल्कि भारत के कई राज्यों में फैल गया। और अब यह मुद्दा हाई कोर्ट तक जा पंहुचा है।
संस्थाओं और राजनेताओं की राजनीति
इस मुद्दे को सबसे ज्यादा हवा दी संस्थाओं ने, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) ने मुस्लिम बच्चों को और हिंदू जागरण वैदिक (HJV) और बजरंग दल ने हिंदू बच्चों को।
एक ओर मुस्लिम बच्चे हिजाब की मांग कर रहे है और दूसरी और संस्थाओं का शिकार हुए हिंदू बच्चे भगवा शॉल में दिखाई दिए। शिक्षकों ने धर्म से जुड़े किसी भी तरह के कपड़े पहन कर आने पर पाबंदी लगाई और बच्चों का स्कूल में प्रवेश वर्जित किया।
“विद्यालय में ना भगवा के लिए स्थान है और ना हिजाब के लिए।”
राजनेताओं ने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए, इस मुद्दे पर काफी विवादित टिप्पणियाँ की:
1. प्रियंका गांधी (कांग्रेस) ने कहा, “महिलाएं बिकनी पहने या हिजाब, यह उनकी मर्जी है। इस मामले पर बोलने का किसी को हक नहीं है।
2. उत्तर प्रदेश, समाजवादी पार्टी की नेता, रूबीना खान, ने अपने एक बयान में हिजाब पहनने से रोकने वाले लोगों के हाथ काटने की धमकी दी।
3. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने समान नागरिक संहिता की बात की।
4. सिर्फ यही नहीं भारत के कई नेताओं ने इस पर टिप्पणियाँ की। पर बात सिर्फ भारत के नेताओं तक सीमित नहीं रही, हमेशा की तरह, मलाला ने ट्विटर के जरिए भारत के आंतरिक मामलों में हस्तछेप किया और कहा, “लड़कियों को उनके हिजाब की वजह से विद्यालय में प्रवेश वर्जित करना भयावह है। महिलाओं को कम या ज्यादा कपड़े पहनने की वजह से उसका वस्तुकरण जारी है”।
नेताओं के विवादित बयान और संस्थाओं द्वारा राजनीति की वजह से उडुपी ने हालात तब बिगड़ गए, जब भगवा शॉल और हिजाब समर्थक सामने आए। दावणगेरे जिले के हरिहर फर्स्ट ग्रेड कॉलेज में हालात इतने खराब हो गए की हिंसक भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और दंगाइयों पर लाठीचार्ज किया, जिसकी वजह से कई पुलिस कर्मचारी और विद्यार्थी घायल हुए।
“लोग क्यों भूल जाते है कि, विद्यालय ज्ञान का मंदिर है, जहां धर्म और राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है।”
भारत का संविधान क्या कहता है?
आर्टिकल 15(2) किसी भी भारतीय नागरिक की जाती, लिंग, जन्म, धर्म स्थान और वंश के आधार पर दुकानों, होटलों, सार्वजनिक भोजनालय, सार्वजनिक मनोरंजन स्थल, कुओं, स्नान घाटों, तालाबों, सड़को और पब्लिक रिसोर्ट में घुसने से नही रोका जा सकता।
इस आर्टिकल में कहीं भी विद्यालय या विश्वविद्यालय में किसी धर्म से जुड़े कपड़े पहन कर आने की अनुमति नहीं देता है।
आर्टिकल 28, एजुकेशनल संस्था को धार्मिक प्रचार व आराधना की छूट है, लेकिन सरकार द्वारा पूरी तरह से संचालित एजुकेशनल संस्था में धार्मिक निर्देश व प्रचार नही होंगे।
यह आर्टिकल से हम यह समझते है की, जैसे कॉन्वेंट स्कूल में ईसाई धर्म को मानते हैं और वहां बच्चों का तिलक लगा कर या हिजाब पहन कर आना वर्जित है। उसी प्रकार, मदरसा में हिंदू धर्म या ईसाई धर्म का पालन करना या वेशभूषा पहनना माना है। वहीं दूसरी ओर, प्राइवेट और गवर्नमेंट स्कूल किसी भी तरह के धर्म का पालन करना या वेशभूषा पहन कर आना वर्जित करता है। क्योंकि यह वे स्कूल है जहां किसी भी धर्म के लिए कोई जगह नहीं है, और सभी विद्यार्थियों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए, विद्यालय अपने नियम कानून बनाते है।
धर्म और वेशभूषा से जुड़े केस
2016 में सुप्रीम कोर्ट में भारतीय वायुसेना से लंबी दाढ़ी रखने पर माना किए जाने का एक केस आया जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस्लाम में दाढ़ी रखना आवश्यक नहीं है।
2002 में फातिमा हुसैन सैयद बनाम भारत एजुकेशनल सोसायटी में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक निजी स्कूल में ड्रेस कोड का उल्लंघन कर हिजाब डालने की एक लड़की की याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा, “एक छात्रा जो विशेष बालिका वर्ग में रहते हुए हिजाब या सिर पर दुपट्टा नहीं पहनती है, उसे किसी भी तरह से उपरोक्त कुरान के श्लोक 13 के साथ असंगत कार्य करने या पवित्र पवित्र कुरान में दिए गए किसी भी निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने वाला नहीं कहा जा सकता। मुस्लिम धर्म ने यह अनिवार्य नहीं है की सभी बालिका वर्ग में पढ़ने वाली लड़की को सिर ढकना चाहिए। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता को हिजाब या हेडस्कार्फ ना पहनने का निर्देश देकर इस्लाम में हस्तक्षेप किया गया है।
2018 में फातिमा तसनीम बनाम स्टेट ऑफ केरला केस में केरल उच्च न्यायालय ने माना की संस्था के सामूहिक अधिकार (Collective Rights) को याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत आधारों पर निजता (Privacy) दी जाएगी।
28 जनवरी 2022, को केरल सरकार ने एक मुस्लिम छात्रा जिसने याचिका लगाई थी कि उसे स्टूडेंट पुलिस कैडेट प्रोजेक्ट में हिजाब और पूरी बांह की पोशाक पहनने की अनुमति दी जाए। जिसे केरल सरकार ने खारिज किया और कहा की इस याचिका पर अनुमति देने से राज्य में धर्मनिरपेक्षता पर काफी असर पड़ेगा।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने की अनुमति है। लेकिन विद्यालय और विश्वविद्यालय ही एक ऐसी जगह है जहां धर्म के लिए कोई स्थान नहीं है, जहां सभी को एक स्तर पर देखा जाता है। समानता रखने के लिए यह अनिवार्य है की हर स्कूल का अपना एक यूनिफॉर्म हो, जो बच्चो को धर्म, जाति, अमीरी और गरीबी जैसी असमानताओं से हट कर समानता की ओर ले जाये।