• Political & Social
  • International News
  • Entertainment
  • About Us
  • Contact Us
Spice of Life Media
  • Political & Social
  • International News
  • Entertainment
  • About Us
  • Contact Us
No Result
View All Result
  • Political & Social
  • International News
  • Entertainment
  • About Us
  • Contact Us
No Result
View All Result
Spice of Life Media
No Result
View All Result

भाषा के नाम पर राजनीति क्यों?

Hemlata by Hemlata
July 14, 2025
in Political & Social
0
Language Politics

Language Politics

भाषा कहने को तो एक संचार का माध्यम है, लेकिन भारत में भाषा के नाम पर राजनीति की रोटी सेकी जा रही है। भारत के उत्तरी, मध्य और पश्चिमी भाग में स्थित राज्यों में भाषा की की लड़ाई नहीं है। वहीं दूसरी ओर भारत के दक्षिणी और पूर्वी भाग में स्थित कुछ राज्य जैसे महाराष्ट्र, तमिलनाडु, और कर्नाटक में भाषा के नाम पर राजनीति की जा रही है। 

कर्नाटक भाषा विवाद 

कर्नाटक स्थित बंगलुरू एक ऐसा शहर जहां IT कंपनियां अधिकतम मात्रा में है। जिसकी वजह से अलग अलग राज्यों से लोग नौकरी करने कर्नाटक जाते है। उन लोगों को हर जगह हिंदी बनाम कन्नड़ भाषा का सामना करना पड़ता है। फिर चाहे वो लड़ाई ऑटो वाले, बस कंडक्टर या फिर कट्टर हिंदी विरोधी से हो। 

बेंगलुरु एयरपोर्ट से हिंदी गायब 

हिंदी भारत की राजभाषा है इसलिए हर सरकारी कार्य में हिंदी का प्रयोग होता है। बेंगलुरु एयरपोर्ट के प्रस्थान बोर्ड पर सिर्फ दो भाषाओं का प्रयोग किया गया है – अंग्रेजी और कन्नड़। हैरानी की बात है कि हम अंग्रेजों की भाषा को अपना सकते है, लेकिन जब बात हिंदी की आती है तो कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया स्थानीय भाषा की दुहाई देते है। इसके बाद सोशल मीडिया पर ट्रेंड चलता है #KannadaFirst। 

दुकान बोर्ड विवाद 

BBMP – बृहत बंगलुरू महानगर पालिका ने फरवरी 2024 में 60% कन्नड़ साइन बोर्ड सभी दुकानों के लिए अनिवार्य किया। यह घोषणा तब आती है जब कुछ दिन पहले कर्नाटक रक्षणा वेदिकी नामक एक संस्थान शहर के दुकानों को तोड़ देते है। इसका कारण यह बताया जाता है कि साइन बोर्ड हिंदी में लिखे होते है। व्यापारियों और दुकानदारों के बीच नाराज़गी भी बढ़ी लेकिन राज्य सरकार को तो बस भाषा के नाम पर राजनीति करना है। 

बेलगावी बस कंडक्टर मारपीट

21 फरवरी 2025 को कर्नाटक महाराष्ट्र सीमा के पास बेलगावी में कंडक्टर और यात्री के बीच भाषा के नाम पर झड़प हो गई। बस कंडक्टर एक यात्री से मराठी के बजाय कन्नड़ में बात करने पर जोर दे रहा था। इसके बाद यात्री के साथ आए लोगों ने कंडक्टर पर हमला कर दिया और बात पुलिस तक चली गई। बदले में कर्नाटक के चित्रदुर्गा में महाराष्ट्र के बस कंडक्टर के साथ मारपीट हुई। जिसके बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा खड़ी हो गई और महाराष्ट्र सरकार ने कर्नाटक से आने जाने वाली बसों को निलंबित कर दिया।

यहां मैने कुछ ही विवादों का स्पष्टीकरण किया है। ऐसे अनेकों विवाद है जो सिर्फ कर्नाटक में हुए है और अगर हम लिखने और आप पढ़ने बैठे तो ये कभी खत्म नहीं होगा। कई मामले है जैसे प्रसिद्ध एक्टर कमल हसन की फिल्म भाषा के विवाद पर बैन होना, पंचायत स्तर पर विवाद, दो भाषा नीति, सरकारी संचार में कन्नड़ को अनिवार्य करना और सोशल मीडिया में चल रहे विवादों का समागम करने की तो बात ही छोड़ दो। 

हिंदी से मराठी समाज को कैसा डर?

यह विवाद तब शुरू हुआ जब केंद्र सरकार ने अप्रैल 2025 में कक्षा 1से 5 तक के बच्चों के लिए हिंदी अनिवार्य कर दिया। अगर आप इस बारे में सोचेंगे तो यह बिल्कुल सही है। अगर हम एक और भाषा का ज्ञान लेते है तो इससे कोई नुकसान नहीं बल्कि फायदा ही होगा। विपक्षी दलों से भरी विरोध करने पर हिंदी भाषा को वैकल्पिक रखा गया। 


दुकानदार को मराठी न बोलने पर पीटा

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ताओं ने एक गुजराती दुकानदार को मराठी मराठी न बोलने पर पीटा। महाराष्ट्र के बहुत से लोग उत्तरी भारत में काम करने आते है पर यहां किसी को हिंदी, पंजाबी, हरियाणवी, या गुजराती ना आने पर नहीं पीटा जाता है। इसके बाद बहुत से नेता और अभिनेताओं ने इसकी निंदा की। इसी बीच निशिकांत दुबे के विवाद स्पर्धक बयान के बाद महाराष्ट्र की राजनीति और भी ज्यादा गरमाई। 



“अगर आप हिंदी भाषियों को मार सकते हो तो, उर्दू, तमिल, तेलगु बोलने वालों को भी मार कर दिखाओ…. महाराष्ट्र से निकलकर उत्तर प्रदेश, बिहार आओ, तुम्हे पटक पटक कर मरेंगे। गरीबों से मारपीट क्यो, मुकेश अंबानी भी मराठी कम बोलते है। अगर हिम्मत है तो अंबानी से बात करो।” 

निशिकांत दुबे, बीजेपी सांसद 

जब किसी गरीब को भाषा के नाम पर मारा जाता है तब MNS और ठाकरे परिवार से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है। लेकिन दुबे के बयान पर तत्काल प्रभाव से प्रतिक्रियाएं नजर आई।

“मराठी अस्मिता का अपमान बर्दाश्त नहीं होगा।”

आदित्य ठाकरे, शिव सेना (UBT)

“मुझे हैरानी हो रही है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट चुप है। खुद को डुप्लीकेट शिवसेना का नेता मानने वाले शिंदे को अपनी दाढ़ी कटवा लेनी चाहिए और इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्हें मोदी शाह से पूछना चाहिए कि महाराष्ट्र में क्या हो रहा है।” 

संजय राउत , शिव सेना (UBT)

20 साल बाद ठाकरे भाइयों का मिलन

जहां एक ओर भाषा के नाम पर देश को बांटा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे 20 साल बाद साथ नज़र आए और हवाला दिया मराठी संस्कृति को बचाना है। क्यों हिंदी बोलने से मराठी संस्कृति को ठेस पहुंचती है पर अंग्रेजी बोलने से नहीं?

“हम हिन्दू है, हिंदी नहीं!….अगर आप महाराष्ट्र को हिंदी के रूप में रंगने की कोशिश करेंगे तो संघर्ष तय है।” 

राज ठाकरे , महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस)

इन नेताओं के हिसाब से हिंदी पढ़ने से बच्चों का भविष्य खराब हो सकता है। लेकिन यही नेता अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम में पढ़ते है। सात समुद्र पार देश की भाषा पढ़ना और बोलना सही है पर भारत की राजभाषा पढ़ना या बोलना गलत! क्यों?

तमिलनाडु में हिंदी भाषा लागू करने से अस्तित्व खतरे में?


शिक्षा नीति पॉलिसी (NEP) 2025 जिसमें तीन भाषा, अंग्रेजी, हिंदी, और स्थानीय भाषा लागू करने पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री, स्टालिन ने कड़ा विरोध किया। एक बार फिर हिंदी भाषा को आत्मसम्मान और संस्कृति से जोड़ा गया। 

“अगर हिंदी थोपेंगे तो हम विरोध करेंगे, आत्मा सम्मान के खिलाफ किसी को खेल खेलने नहीं देंगे।” 

एम.के.स्टालिन, तमिलनाडु मुख्यमंत्री 

कई सोशल मीडिया मंचों पर विरोध शुरू हुआ। रेडिट पर #StopHindiImposition ट्रेंड हुआ। देखते ही देखते हिंदी भाषा एक चुनावी मुद्दा बन गई। 

रेलवे स्टेशन से हिंदी बैनर हटाने की मांग

ए. राजा ने रेल मंत्रालय को पत्र लिख कर रेलवे स्टेशन से हिंदी बैनर हटाने की मांग की। यह कहा गया कि इस कदम से तमिल प्रमुखता रखी जाएगी और राज्य की सांस्कृतिक भावना को सम्मान मिलेगा। सड़कों के हिंदी लिखे बैनर पर कालिख पोत दी और तमिल बचाओ के नारे लगाए गए। 

“मुझे लगता है भारत की राष्ट्रीय भाषा “अनेकता में एकता है”। 

स्पेन में सांसद कनिमोझी करुणानिधि, DMK ने कहा

यह बात बिलकुल सही है, भारत के हर राज्य की अपनी एक अलग संस्कृति है। परंतु हिंदी भाषा को पढ़ने या बोलने से किसी संस्कृति को ठेस नहीं पहुंच सकती। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत की राजधानी दिल्ली है, जहां हर राज्य के लोग रहते है, सबकी अपनी बोली है, भाषा है, परंतु दिल्ली ने कभी भाषा के नाम पर विवाद नहीं होता। जरूरत है अन्य राज्यों को प्रेरणा लेने की और भाषा के नाम पर देश को बटने से बचाने की। 

Tags: #india#Karnatak#language#maharashtra#politics#TamilNadu#Thakrey
Previous Post

Trump’s Big Beautiful Bill Passed in US House

Next Post

Sharvari Shines as Nykaa’s Latest Brand Icon

Next Post
Sharvari - Brand Icon Nykaa

Sharvari Shines as Nykaa’s Latest Brand Icon

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • Entertainment
  • International News
  • Political & Social
  • Sharvari Shines as Nykaa’s Latest Brand Icon
  • भाषा के नाम पर राजनीति क्यों?
  • Trump’s Big Beautiful Bill Passed in US House
  • DU Adds Love and Heartbreak to Curriculum
  • Sardaar Ji 3 in Spotlight: Diljit’s Film Faces Backlash for Casting Hania Aamir

Recent Posts

  • Sharvari Shines as Nykaa’s Latest Brand Icon
  • भाषा के नाम पर राजनीति क्यों?
  • Trump’s Big Beautiful Bill Passed in US House
  • DU Adds Love and Heartbreak to Curriculum
  • Sardaar Ji 3 in Spotlight: Diljit’s Film Faces Backlash for Casting Hania Aamir

Categories

  • Entertainment
  • International News
  • Political & Social
  • Political & Social
  • International News
  • Entertainment
  • About Us
  • Contact Us

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.

No Result
View All Result
  • Political & Social
  • International News
  • Entertainment
  • About Us
  • Contact Us

© 2025 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.