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नागरिक संशोधन कानून 2019 के लागू होने पर पूरे भारत में इसका जमकर विरोध किया गया। मीडिया द्वारा हमें यह भी पता चला कि इन विरोधियों में से कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें CAA का अर्थ भी नहीं पता है, जिससे यह ज्ञात होता है कि वे सिर्फ एक भेड़चाल का हिस्सा हैं।

नागरिक संशोधन कानून 2019 क्या है?

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केंद्रीय गृह मंत्री, अमित शाह ने यह बिल 1 दिसंबर 2019 को लोकसभा में पेश किया। जिस पर काफी वाद विवाद के बाद इस बिल को 311 वोटों के साथ लोकसभा में अधिनियमित किया गया। 12 दिसंबर 2019 को भारत के राष्ट्रपति, रामनाथ कोविंद की मंज़ूरी मिलने के बाद इस बिल को पारित किया गया।

संशोधन से पहले नागरिकता या तो जन्म से मिलती थी या फिर 11 साल तक भारत में रहने के बाद। इस कानून के पारित होने के बाद इसकी अवधि 11 साल से घटाकर 6 साल कर दी गई है।

यही नहीं इस कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 6 समुदाय (हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी और बौद्ध) के लोग, जिन्होंने भारत में 31.12.2014 से पहले शरण ली है, उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से गैर कानूनी तरीकों से आए मुसलमानों को नागरिकता देने की बात नहीं कही गई है।

क्यों भारतीय मुसलमान और भारत का उत्तर पूर्वी हिस्सा इस कानून के विरुद्ध है?

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भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश रहा है, जहां हर धर्म के लोगों को बराबर का दर्जा दिया जाता है, उन्हें समान अधिकार प्राप्त होते हैं। यह कानून मुसलमानों को नागरिकता ना प्रदान करके धर्म के नाम पर भेदभाव करता है।

  • भारत के दूसरे पड़ोसी देश जैसे श्रीलंका, जहां तमिल और सहला बहुमत के बीच गृह युद्ध चला था, वहां भी हिन्दुओं (तमिल) पर अत्याचार हुए पर उनका विवरण इस कानून में नहीं है।
  • नेपाल में मधेशी हिन्दुओं के साथ भी सरकार भेदभाव करती है लेकिन इसके बारे में कानून में कोई चर्चा नहीं हुई है।
  • इसके अलावा तिब्बत से जो बुद्धिष्ट (कम मात्रा में) भारत में आते हैं और बांग्लादेश में जो नास्तिक हैं, जिनका कोई धर्म नहीं होता, उनपर अत्याचार किए जाते हैं, उसके बारे में भी कोई चर्चा नहीं की गई है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत सरकार ने सिर्फ तीन देशों को ही क्यों चुना, जबकि हिन्दुओं पर आत्याचार तो भारत के दूसरे पड़ोसी देशों में भी हो रहे हैं?

भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से में भी इस कानून का विरोध किया गया। बांग्लादेश में रह रहे हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी और बौद्ध धर्म के लोगों को नागरिकता देने से इन राज्यों के लोगों को यह डर है कि बाहरी लोगों के आगमन से इनकी संस्कृति, भाषा और जाति को आहत पहुंचेगा, इसके साथ ही जनसंख्या में भी वृद्धि होगी।

उत्तर पूर्वी हिस्से के राज्य जैसे अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नागालैंड जाने के लिए IPL (Inner Line Permit) की आवश्यकता होती है। यह भारत का वह हिस्सा है, जहां के लोग नहीं चाहते कि बाहरी लोग उनके राज्य में आकर उनकी भाषा, संस्कृति और जाति को किसी भी तरीके से हानि पहुंचाए।

भारत में नागरिक संशोधन कानून 2019 क्यों लागू होना चाहिए?

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यह जानने के लिए आपको हिंदुस्तान का इतिहास जानने की ज़रूरत है।

1947, हिंदुस्तान को आज़ादी मिलने के बाद, लॉर्ड माउंबेटन ने यह घोषणा की कि देश दो भागों में विभाजित होगा, भारत और पाकिस्तान। यह विभाजन मोहम्मद अली जिन्ना की मांग पर किया गया, क्योंकि वे चाहते थे कि मुसलमानों के लिए एक अलग देश का निर्माण होना चाहिए। जिसके तहत मुस्लिम बहुमूल्य लोग पाकिस्तान में और हिन्दू बहुमूल्य लोग भारत में रहेंगे।

इसमें यह भी तय हुआ कि इन दोनों देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक लोगों को समान अधिकार व दर्जा दिया जाएगा। भारत ने हमेशा की तरह ना सिर्फ इस बात को स्वीकारा बल्कि सभी धर्म और जाति के लोगों को समान दर्जा के साथ-साथ वे सारे अधिकार दिए, जिसका हकदार हर एक भारतीय है।

परन्तु पाकिस्तान में हिन्दुओं और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर अत्याचार हुए और उन पर दबाव डाला गया कि वे अपना धर्म परिवर्तन करें। बहुत से हिन्दुओं ने अपने घर की इज्ज़त और अत्याचारों से मुक्ति के लिए अपना धर्म भी परिवर्तित किया, क्योंकि आज़ादी के बाद पाकिस्तान ने यह तय किया कि वह धर्मनिरपेक्ष देश नहीं रहेगा, इसके तहत पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र में तब्दील हो गया।

1971 में विभाजन के बाद बंगाल का पूर्वी हिस्सा, पूर्वी पाकिस्तान के तौर पर, पाकिस्तान से जुड़ गया। पाकिस्तान की सैन्य सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान पर अधिक ध्यान नहीं दिया और उन पर उर्दू भाषा को थोप दिया। 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, जिसे भारत ने जीता और स्वर्गीय इंदिरा गॉंधी ने पूर्वी पाकिस्तान को अलग करके एक स्वतंत्र देश का निर्माण किया, जिसका नाम बांग्लादेश रखा गया।

बांग्लादेश ने भी खुद को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया, जिसके अनुरूप वहां रह रहे हिन्दू और नास्तिकों (जिनका कोई धर्म नहीं होता) पर अत्याचार हुए, जिसकी वजह से बहुत से हिन्दुओं और अल्पसंख्यकों ने भारत में शरण लिया। इसके साथ ही मुस्लिम समुदाय के लोग भी आएं परन्तु वे किसी अत्याचार की वजह से नहीं बल्कि आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने की वजह से भारत आएं, जहां उन्हें रोज़गार मिला और आर्थिक स्थिति में सुधार भी हुआ।

किसी धर्म के खिलाफ नहीं है नागरिक संशोधन कानून 2019

नागरिक संशोधन कानून किसी एक धर्म (मुस्लिम) के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले उन मुसलमानों के खिलाफ है, जो भारत में अवैध रूप से निवास कर रहे हैं। इन अवैध निवासियों की वजह से भारतीय (हर धर्म के) लोग सरकार द्वारा दिए गए अनेक लाभों से वंचित रह जाते हैं।

दूसरी ओर वे पीड़ित हिन्दू और अल्पसंख्यक समुदाय, जो इस्लामिक देश में रह रहे थे और वहां हो रहे अत्याचार की वजह से भारत आएं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि विश्व में इस्लामिक देश है, जो मुस्लिम अनुयायियों को सहारा दे सकता है परन्तु हिन्दुओं और दूसरे अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को नहीं।

भारत हमेशा से एक ऐसा देश रहा है, जिसने हर धर्म के लोगों को अपनाया है। ऐसे में भारत सरकार द्वारा लाया गया नागरिक संशोधन कानून का मैं पूर्ण रूप से स्वागत करती हूं, जो ना सिर्फ हिन्दुओं बल्कि अल्पसंख्यक वर्ग को भारतीय नागरिकता प्रदान करके भारत के निवासी के रूप में स्वीकारता है।

By Hemlata

As a news author, Hemlata understands the responsibility of her role in shaping public discourse and maintaining the public's trust. She is committed to upholding the highest ethical standards in journalism, ensuring accuracy, fairness, and transparency in her reporting.

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