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जब भारत का संविधान का निर्माण हो रहा था, तब देश में कुछ ऐसे वर्ग थे जिनकी राजनैतिक, आर्थिक के साथ साथ सामाजिक स्थिति में उन्हे वह दर्जा मिला था जो अन्य वर्गों मिलता था। समाज के इन वंचित वर्गो को विकास की धारा में साथ लेकर चलने के लिए संविधान में ऐसे प्रावधान किए गए जिससे इस वर्ग का सर्वांगीण विकास अन्य वर्गों के समान ही निश्चित हो सके। इन प्रावधानों के आधार के तहत इन सभी वंचित वर्ग के नागरिकों को सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण  प्रदान किया गया। संविधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर ने इन प्रावधानों को केवल दस साल के लिए लागू करने को कहा था। परंतु राजनैतिक हितों के लिए सियासत के टेकेदार इसे वोट बैंक बनाकर लगातार इस समयावधि को बढ़ाते गए। 

भारत में केंद्र सरकार ने 27% आरक्षण उच्च शिक्षा और 50% आरक्षण सरकारी नौकरी में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदान किया। इसके साथ ही संविधान में यह भी सुनिश्चित किया की किसी भी अवस्था केंद्र या कोई भी राज्य 50% आरक्षण की सीमा को पार नही कर सकता। 

सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ जा कर कई राज्य, जैसे राजस्थान ने 68% और छत्तीसगढ़ ने 76% आरक्षण का प्रस्ताव रखा। 

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में रहने के लिए किसी भी तरह की हदें पार करने को तैयार है। छत्तीसगढ़ में या तो सरकारी पदों की भर्तियां नही निकलती, और अगर निकल भी गई तो परीक्षा कब होगा यह भगवान भरोसे चल रहा है। या तो परीक्षा की तारीख बदल रही है, और अगर परीक्षा हो गई तो उसका परिणाम नहीं आता है। इन हालातों का कारण है आरक्षण बिल। छत्तीसगढ़ की सरकार सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ जा कर आरक्षण की सीमा 50% से पार कर 76% करना चाहती है। 

आपको सुन कर हैरानी होगी, पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने आरक्षण का आंकड़ा 50% से बढ़ाकर 58% रखा था। जब यह मामला उच्च न्यायालय के पास पहुंचा तो दोनो वर्गो के वकीलों ने अपनी दलीलें पेश की। सामान्य वर्ग के याचिकाकर्ताओं की और से पेश अधिवक्ता कौस्तुभ शुक्ला ने कोर्ट में छत्तीसगढ़ सर्वोच्च न्यायालय का प्रशासनिक आदेश कोर्ट में पेश किया। जिसके अनुसार उच्च न्यायालय की भर्तियों में 50% आरक्षण मिलने का प्रावधान है। 19 सितंबर 2022 को उच्च न्यायालय ने  छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पारित नवीन आरक्षण बिल को असंवैधानिक बताकर निरस्त कर दिया।

जिसके उपरांत छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार, उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ जा कर विधानसभा बजट सत्र में आरक्षण बिल पेश किया, जिसमें आरक्षण का प्रतिशत 58% (संविधान में 50% आरक्षण का प्रावधान है) से बढ़ाकर 76% रखा। जिसमे अनुसूचित जाति (SC) को 13%, अनुसूचित जनजाति (ST) – 32%, पिछड़ा वर्ग (OBC) – 27% और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को 4% आरक्षण देने का प्रावधान रखा। विधानसभा में इस बिल पर दोनो पक्षों में कड़ी बहस हुई और विपक्षी दल ने इस बिल का बहिष्कार भी किया। 

इसके पश्चात छत्तीसगढ़ सरकार ने आरक्षण बिल पूर्व राज्यपाल अनुसुईया उइके को दिया, जिस पर राज्यपाल ने स्वीकृति नहीं प्रदान की और ना ही आरक्षण बिल को आगे बढ़ाया। 

यह केस अभी सर्वोच्च न्यायालय में है, इसका फैसला 22 मार्च 2023 को आना था, पर अब केस की अगली तारीख 3 मेय 2023 हो गया। 12 फरवरी 2023 को छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल, विश्व भूषण हरिचंद ने कार्यभार संभाला। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने राज्यपाल के साथ करीब 4 से 5 बिलों पर चर्चा की जिसमे से एक आरक्षण बिल भी था। 

छत्तीसगढ़ के युवाओं का भविष्य सियासी हाथो में है, अपनी राजनैतिक सत्ता बचाने के लिए बघेल सरकार लाखों युवाओं की जिंदगी के साथ राजनीति खेल रही है। आशा है तो बस सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की, जो तारीख पर तारीख बदल रही है। शायद कोर्ट के लिए सिर्फ यह एक केस का फैसला है, पर युवाओं के लिए यह फैसला उनके आने वाले भविष्य का फैसला है। 

By Hemlata

As a news author, Hemlata understands the responsibility of her role in shaping public discourse and maintaining the public's trust. She is committed to upholding the highest ethical standards in journalism, ensuring accuracy, fairness, and transparency in her reporting.

3 thoughts on “आरक्षण बिल: राजनीति की बलि चढ़ता युवाओं का भविष्य”
  1. Heya this is kinda of off topic but I was wanting
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